- 15 Posts
- 31 Comments
पिछले 20 वर्षों में हमारे देश में पानी की गुणवत्ता में आयी व्यापक गिरावट से पानी का स्वास्थ्य खराब हुआ जिससे जन स्वास्थ बुरी तरह से प्रभावित हुआ। पानी के स्वास्थ में आयी गिरावट का प्रमुख कारण सबमरसिबल पम्प माना जा सकता है। पिछले चार दशकों में अधिक गहराई से तेजी से अधिक पानी निकालने की क्षमता का विकास होना जनसामान्य को पानी की आत्मनिर्भरता की ओर ले गया। लोगों में पानी की कमी का भय समाप्त होने से उनका पानी के प्रति आदर भाव समाप्त हो गया। जिसे वे मेहनत से प्राप्त करने के कारण व्यर्थ नहीं करने एवं जल से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं से प्रदर्शित करते थे। अपने नदियों, तालाबों, कुंओं के प्रति सजग एवं चौकन्ने रहते थे। जब लोगों को बिजली का बटन दबाते ही बेतहाशा पानी भूगर्भ से मिलने लगा तो धीरे धीरे जल संचय की प्रवृत्ति भी समाप्त होने लगी। बढ़ते औद्योगीकरण ने नदियों को अपने अवजल ढ़ोने का माध्यम बना लिया। पोखरे सूखने लगे, पाटे जाने लगे। क्यों कि लोगों को लगा कि इनका भला क्या काम? पानी तो मिल ही रहा था। परम्परागत जल विज्ञान को भूलकर लोगों ने जल संचय एवं भूमिगत जल पुनर्भरण में नदियों, पोखरों की भूमिका पर पर ध्यान नहीं दिया क्यों कि उन्हे अभी भी सदियों से भूभर्ग में जमा स्वच्छ जल मिल रहा था। उनकी सिंचाई की जरूरते भी इससे पूरी हो रही थीं। उन्हे नदियों एवं नहरों एवं वर्षा पर आश्रित नहीं रहना पड़ता था। जब जी चाहा जमीन की गहराई से पानी निकाल लिया। इस प्रकार वे जल प्राप्ति के अन्य स्त्रोतों के प्रति उदासीन हो गये।
व्यापक भूजल दोहन से पाताल का पेट भी खाली होने लगा। रासायनिक कृषि एवं जल भराव कृषि को बढ़ावा मिलने से जल के साथ रिसकर हानिकारक रसायन भूजल में मिलने लगा। जिससे भूजल में प्रदूषण बढ़ना शुरू हुआ। भूजल के निरंतर दोहन से होने वाली कमी से रसायनों की सांद्रता बढ़ती गयी। सतही जल औद्योगीकरण के कारण से खराब हो गया। जिसके कारण भी भूजल प्रदूषित हुआ। क्योंकि जलविज्ञान के अनुसार सतही जल भूमिगत जल को भरता है एवं भूमिगत जल सतही जल को पोषित करता है। इस प्रकार दोनों एकदूसरे के पूरक हैं। आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि किस प्रकार हमारे पेयजल के दोनो प्रमुख स्त्रोत खराब हो गये। अब बचा वर्षा का जल ! उसे अभी कौन पूछता? पानी तो अभी भी जमीन की गहराई से मिल ही रहा था। भले ही उसकी गुणवत्ता गिर गई थी। जब लोगों में कैंसर जैसी बिमारियों में अत्यधिक वृद्धि होनी लगी तो चिंता जरूरी थी। व्यापक रिसर्च हुए, नतीजे आए तो दोषी निकला पेयजल! अधिकतर मामलों में पेयजल की खराब गुणवत्ता एवं हानिकारक रसायनों से उपजे अन्न कारण पाए गये। हरित क्रान्ति की रसायनयुक्त कृषि एवं औद्योगिक क्रान्ति ने देश के जलसंसाधन को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया।
उपरोक्त परिस्थितियों ने देश में पानी के लिए बाजार बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर के बाजार का 75 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा 3 बड़े ब्रांडो (बिसलरी, किनले एवं एक्वाफिना) का है. देश की अधिकतर गरीब जनता के लिए साफ-सुरक्षित सस्ते पेयजल की मांग बढ़ी तो बाजार बढ़ा, अधिक वाटर प्यूरीफाई प्लाण्टों की आवश्यकता भी बढ़ी। सस्ते साफ पानी की अपेक्षाएं भी बढ़ी। परिणाम स्वरूप गली मोहल्लों में साफ पानी देने के नाम पर पानी का धंधा करने वाले आर ओ प्लाण्ट लगने लगे। जो पैकेज्ड पानी से सस्ता लेकिन सुरक्षित पानी 20 एवं 10 ली. के कण्टेनर में लोगों को देने का दावा करने लगे।
आर ओ का तात्पर्य है रिवर्स आस्मोसिस। अर्थात आस्मोसिस के विपरीत क्रिया। आस्मोसिस क्रिया के अन्तर्गत कम लवणीय सांद्रता वाला जल अधिक लवणीय सांद्रता वाले जल की तरफ खिंचकर उसमें मिल जाता है। इसके विपरीत आर ओ तकनीकी में अधिक लवणीय सांद्रता वाले जल को बलपूर्वक ऐसे मेंम्ब्रेन से ढ़केला जाता है जिससे केवल जल के अणु या इससे छोटे अणु ही निकल सकें। इस प्रकार लवणीय सांद्रता से मुक्त अथवा मिनरल मुक्त जल प्राप्त किया जाता है। इस मेम्ब्रेन से सारे लवणों को छानकर दिया जाता है क्यों कि इनके अणु जल के अणु से बड़े होते हैं।
आइये! अब इन आर ओ प्लाण्टों से सम्बन्धित कुछ बिन्दुओं पर विचार करते हैं जिससे आपको यह अंदाजा हो जाएगा कि कितना सुरक्षित है आपके लिए आर ओ का पानी।
निश्चित रूप से आपके जवाब हां में होगें। तो अब सजग नागरिक की भूमिका निभाने की बारी आपकी है।
Read Comments