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देश के 10 राज्यों के 246 जिले सूखे की मार झेलने को विवश हैं. उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्र, ओडिशा, झारखण्ड एवं छत्तीसगढ़ ने अपने को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है. इस प्रकार देश का लगभग एक तिहाई हिस्सा पानी की अत्यंत कमी से संघर्ष कर रहा है. देश के अन्य भागों में भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है. महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित लातूर- बीड, उत्तर प्रदेश में बुन्देलखण्ड, मध्यप्रदेश में बैतूल, टीकमगढ़ आदि जिले न्यूजपेपर एवं न्यूज चैनलों की सूर्खियों में इन दिनों बने हुए हैं। कारण जानकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आँखें भर आएंगीं, आँखों से पानी निकल आएगा क्योकि सूखे से जूझते देश के इन इलाकों में पानी की अत्यंत कमी हो चुकी है। जिसके कारण किसान को खेतों के लिए पानी की आस है तो आम इंसान को अपने घर में दो घूँट पीने के पानी के इंतजाम के लिए सरकार द्वारा पानी की सप्लाई के लिए भेजे जाने वाले टैंकरों के आने का इंतजार है। जो तीन चार दिनों में एक बार पानी की सप्लाई करने में ही सक्षम है। मवेशियों का तो पूछना ही क्या? इंसानों से बचे तो उनको पानी मिले। बुन्देलखण्ड में भला हो कुछ गैर सरकारी संगठनों का जिन्हे मवेशियों की प्यास का ख्याल है और उनकी बदौलत कुछ किस्मत की धनी मवेशियों को भी कुछ पानी मिल रहा है।
पिछले तीन वर्षों से सूखे की मार झेल रहे देश के इन इलाकों में रहने वाले लोगों के पास पीने के लिए पानी नहीं है, अन्य दैनिक जरूरतों की तो बात ही छोड़िये, लेकिन उनकी आँखें इस भयावह स्थिति के कारण गीली रहती हैं। हालात से तंग आकर बीड एवं लातूर में कई किसानों ने आत्महत्या कर ली। लातूर में पानी की सप्लाई का प्रमुख स्त्रोत माजरा डैम बेपानी हो चुका है। पानी के टैंकरों की लूट को देखते हुए प्रशासन ने यहाँ दिनांक 20 मई से 31मई 2016 तक के लिए धारा 144 लगा दी है, जिसके अन्तर्गत पानी के टैंकरों के पास एक समय में 5 से अधिक व्यक्ति इकठ्ठा नहीं हो सकते। जी हाँ, देश में पानी का आपातकाल लग चुका है। इन जिलों के शहरी क्षेत्रों में कुछ पानी सरकार के प्रयास से मिल रहा है परंतु ग्रामीण इलाकों के हालात बदतर हो रहे हैं। पानी सप्लाई के सभी स्त्रोंत, नदियां , तालाब, बाँध आदि सूख चुके हैं। बैतूल में क्या इंसान क्या पशु दोनो एक जल स्त्रोत से एक साथ पानी पीने के लिए मजबूर हैं। ये हालात तब हैं जबकि अभी ठीक से गर्मी पड़नी शुरू भी नहीं हुई है। आगे न जाने क्या हालात होंगें। लोगों को जहां से भी जैसा भी पानी गढ़्ढ़ों, गहरे कुंओं, सोतों से मिल रहा है, जितना भी मिल पा रहा है सब कामधाम छोड़कर पानी इकठ्ठा करने में लगे हुए हैं। पानी की गुणवत्ता की तो कोई बात ही नहीं कर रहा है. लोगों को किसी भी प्रकार पानी चाहिए. टीकमगढ़ में नगर निगम द्वारा नदी के पानी की सशस्त्र पहरेदारी कराई जा रही है कि कहीं इलाके से सटे उत्तर प्रदेश के ग्रामीण नदी का पानी न निकाल सकें।
सूखाग्रस्त इलाकों में कहीं-कहीं तो एक घण्टे में मात्र एक घड़ा पानी इकठ्ठा किया जा रहा है, यहां भी लोग कतार लगाकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। पानी के लिए आपस में झगड़ रहे हैं। पड़ोसी-पड़ोसी को नहीं पहचान रहा है। पानी की कमी ने इंसानियत के रिश्तों में दरार डाल दिया है। अपने निजी कुओं पर लोगों ने ताले लगा रखे हैं, एवं तालाबों पर पहरा. बेबस लोग तो अब यहां तक कह रहे हैं कि यदि पानी के लिए जेल भी जाना पड़े तो वे जाएंगें, कम से कम सरकार उन्हे जेल में तो पानी देगी ही। कोई 5 किमी पैदल जाकर अपने कंधे पर एक घड़ा पानी लाकर संतोष अनुभव कर रहा है तो कोई ग्रामीण इलाकों से साइकिल से 10किमी शहर आकर दो घड़े बांध के ले जा रहा है। बुंदेलखण्ड के हालात बद से बदतर हो रहे हैं, यहां के गरीब किसान अनाज के अभाव में घास की रोटी खा के जीवन से संघर्ष कर रहे हैं।
उपरोक्त हालातेबयां आपको किसी फिल्म की स्टोरी की तरह लग सकती हैं क्योंकि हमारे आपके इलाके में पानी मिल रहा है। परंतु यह हकीकत है। यदि सरकारी पानी सप्लाई से पानी नहीं मिलता तो बोरवेल के माध्यम से जमीन की गहराई से पानी निकाल लेते हैं। उस पानी की घटती मात्रा और गुणवत्ता की परवाह किये बिना भरपूर इस्तेमाल भी करते हैं और बेतहाशा बर्बाद भी। शायद इसलिए ही हमें पानी की कमी वाले इलाकों के लोगों के दर्द का एहसास नही है। याद रखिये! ये इलाके भी कभी जल समृद्ध थे। यहां पर व्यापक भूजल दोहन किया गया और पारम्परिक वर्षा जल संरक्षण को भुला दिया गया। अतः यदि अभी भी हमसब मिलकर पानी बचाने एवं वर्षा जल संरक्षण हेतु तत्पर नहीं हुए और पानी का इसी प्रकार दुरूपयोग करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब कटोरी लेकर बूँद – बूँद पानी इकठ्ठा करना पड़ सकता है। बूँद – बूँद है कीमती, न करें जल की क्षति!
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