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जल एवं वायु जीवन के आधार मात्र ही नहीं हैं, वरन दोनों एकसाथ जुड़ कर “जलवायु” अर्थात पर्यावरण के निर्माण में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. निर्मल-स्वच्छ जल के बिना स्वस्थ पर्यावरण की कल्पना करना न केवल असंभव है बल्कि वर्तमान में हम जल प्रदूषण के कारण पर्यावरण को पंहुच रहे नुकसान का परिणाम भुगत रहे हैं. हमारा पर्यावरण इस कदर प्रदूषित हो गया है कि इसे अब जीवन के लिए खतरे के रूप में देखा जाने लगा है. प्रदूषित जल, प्रदूषित वायु एवं वनों एवं वृक्षों का विनाश धरती को जीवन के लिए आवश्यक दशाओं की समाप्ति की ओर तेजी से ढकेल रहा है. दुष्परिणाम स्वरुप ग्लोबल वार्मिंग एवं इसके दुष्प्रभावों का सामना हमें करना पड़ रहा है. यह कहा जा रहा है कि ग्लेशियर पिघलने के कारण समुंद्र के जलस्तर में वृद्धि से हमारी धरती पर जीवन, जल प्रलय के कारण समाप्त होगा, लेकिन हम जिस प्रकार भूगर्भीय जल का दोहन कर रहे हैं, अथवा उपलब्ध जल को प्रदूषित कर रहे हैं उसे देखते हुए लगता है कि जल प्रलय से पूर्व दुनिया पेयजल की कमी से समाप्त हो सकती है. पेयजल की यह कमी तीसरे विश्वयुद्ध का कारण भी बन सकती है. अत: स्वच्छ एवं सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता की ओर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है अर्थात जल का स्वास्थ्य ठीक करने की जरुरत है.
अस्वस्थ जल संकट के प्रमुख कारण एवं दुष्प्रभाव: वर्तमान जल संकट का प्रमुख कारण हैं
1.आधुनिक विकास की अंधी दौड़ में स्थानीय पारिस्थितिकी की घोर अनदेखी:विकास के नाम पर कारखानों द्वारा वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण के मानकों की अनदेखी की गयी, हिमालय के कच्चे पहाड़ों में विस्फोट, जगह-जगह डैम, चेक डैम बनाकर नदियों के पर्यावरणीय प्रवाह को बाधित किया गया, भूमिगत जल का व्यापक दोहन किया गया एवं वनों तथा वृक्षों को विकास के नाम पर उजाड़ दिया गया एवं जिस संख्या में काटा गया उसकी तुलना में नाम मात्र का वृक्षारोपण हुआ, साथ ही जो वृक्षारोपण हुआ भी वह भी देखरेख एवं सुरक्षा के बिना सफल नहीं हुआ.
2.नीतिनिर्माताओं में दूरदर्शिता की कमी: अधिक अन्न उपजाने की चाह में रासायनिक कीट नाशकों, उर्वरकों एवं खादों को बढ़ावा देने के साथ ही सिंचाई के लिए जल की बर्बादी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गयी साथ ही इन हानिकारक रसायनों के धरती में रिसाव से भूमिगत जल प्रदूषित हुआ, अत्यधिक जल के प्रयोग के कारण खेतों की उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.
3.कम परिश्रम में अधिक पाने की चाह: बिजली का स्विच ऑन करते ही पम्पिंग सेटों एवं सबमर्सिबल पम्पों से बिना किसी परिश्रम के भूमिगत जल प्राप्त कर लेने की क्षमता के कारण बेतहाशा भूजल दोहन को बढ़ावा मिला. बोरिंग सम्बन्धी नियमों का व्यापक अनदेखी से जिसे देखो वही अपने खेतों एव घरों में बोरिंग कराये बैठा है. पेयजल एवं अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल लायक जल का अंतर समाप्त हो गया जिसके कारण हजारों लाखों वर्षों में धरती में जमा बहुमूल्य पेयजल का उपयोग टायलेट में फ्लश करने तक के लिए किया जाने लगा है. हमें यह समझना होगा की जिस प्रकार हम अपने घरों में शुद्ध पेयजल के लिए लगाये गए वाटर प्यूरीफायर के शुद्ध जल का उपयोग सिर्फ पीने एवं खाना बनाने के लिए करते हैं, क्योकि वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल महंगा होता है. उससे बर्तन – कपडे नहीं धोते, अथवा बागवानी में इस्तेमाल नहीं करते, फ्लश में नहीं बहाते जबकि बेकार समझ कर नाली में बहा दिए जाने वाले आरओ वेस्ट वाटर का उपयोग हम पेयजल एवं बागवानी को छोड़ कर अन्य कार्यों के लिए कर सकते हैं. इसी आधार पर धरती में जमा पेयजल भी उपयोग किया जाना चाहिए. हमें यह समझना होगा की यह बहुमूल्य है.
4.हमारी बेफिक्री की मानसिकता: हमारी नदियों में सीवर मिलाया गया, कारखानों का रासायनिक अवजल डाला गया, पोखरे-तालाबों एवं नदियों की भूमि को कूड़े के डंपिंग ग्राउंड के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा, उन पर अवैध कब्ज़ा किया जाने लगा, हमारी नदियाँ, हमारे तालाब, हमारी झीले, झरने आदि सूखते रहे, हमारे पहाड़ टूटते रहे और हम बेफिक्र बने रहे जिसका प्रमुख कारण “हमारा हित” के बजाय “मेरा हित सर्वोपरि” की भावना का विकसित होना एवं समाज पर धनबल एवं बाहुबल का हावी होना रहा है.
इनके आलावा अन्य अनेक कारण हैं जिनके निम्नलिखित दुष्परिणाम के रूप में हम वर्तमान अस्वस्थ जल संकट से ग्रसित हैं-
1.सर्वाधिक संकट तो पेयजल के प्रदूषित होने का है जिससे अनेक प्रकार के बीमारियाँ हो रही हैं एवं देश की गरीब जनता की मेहनत की कमाई का अधिकांश हिस्सा इलाज में खर्च हो रहा है अथवा बोतल बंद पानी खरीदने में एवं महंगे वाटर प्यूरीफायर लगाने में.
2.चिंता का विषय यह भी है कि प्रदूषित जल के परिणामस्वरूप जो अन्न हम उपजा रहे हैं वह भी संदूषित हो रहा है जिससे भी अनेक बीमारियाँ हो रही हैं. फल, साग, सब्जी, अनाज, ढूध आदि दैनिक उपयोग की सामग्रियों में प्रदूषित जल एवं हानिकारक रसायनों के दुष्प्रभाव मिल रहे हैं.
3.नदियों, तालाबों, पोखरों आदि का संरक्षण न किये जाने के कारण या तो वे सूख जा रहे हैं अथवा इस कदर प्रदूषित हो गए हैं कि उनका जल उपयोग लायक नहीं रहा.
4.कुछ किये बिना ही सब कुछ पा लेने की चाह में परंपरागत वर्षा जल संरक्षण को हम भूल गये.
5.खनिजों के अवैध खनन के कारण कम गहराई पर स्थित खनिज पत्थरों की वह परत समाप्त होने लगी जो वर्षा के जल को रोक कर रखती थी. इससे उन क्षेत्रों में जल संकट उत्पन्न हुआ जहाँ पर भूमिगत जल खारा है.
6.भूमिगत जल पर निर्भरता बढ़ने से, भूजल का स्तर खतरनाक स्थिति तक गिर गया भूजल प्रदूषण के कारण आर्सनिक, फ्लोराइड, आयरन आदि प्रदूषकों की मात्रा में वृद्धि होने लगी जो जानलेवा स्तर तक बढ़ गयी.
7.भूमिगत जल के नीचे चले जाने से समुंद्र के तटवर्ती क्षेत्रों में खाली स्थान में समुंद्री जल का रिसाव होने लगा एवं सम्पूर्ण भूमिगत जल में खारेपन की समस्या में वृद्धि होने लगी है.
अत: स्पष्ट है जो जल जीवन का आधार कहा जाता है वही अब खतरनाक रूप लेकर मौत का कारण बन रहा है. उपरोक्त कारणों एवं दुष्परिणामों की गंभीरता को समझते हुए जल को स्वस्थ करने के लिए पूरे देश में अभियान चलाने की आवश्यकता है.
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1.: बिजली का स्विच ऑन करते ही पम्पिंग सेटों एवं सबमर्सिबल पम्पों से बिना किसी परिश्रम के भूमिगत जल प्राप्त कर लेने की क्षमता के कारण बेतहाशा भूजल दोहन को बढ़ावा मिला. बोरिंग सम्बन्धी नियमों का व्यापक अनदेखी से जिसे देखो वही अपने खेतों एव घरों में बोरिंग कराये बैठा है. पेयजल एवं अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल लायक जल का अंतर समाप्त हो गया जिसके कारण हजारों लाखों वर्षों में धरती में जमा बहुमूल्य पेयजल का उपयोग टायलेट में फ्लश करने तक के लिए किया जाने लगा है. हमें यह समझना होगा की जिस प्रकार हम अपने घरों में शुद्ध पेयजल के लिए लगाये गए वाटर प्यूरीफायर के शुद्ध जल का उपयोग सिर्फ पीने एवं खाना बनाने के लिए करते हैं, क्योकि वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल महंगा होता है. उससे बर्तन – कपडे नहीं धोते, अथवा बागवानी में इस्तेमाल नहीं करते, फ्लश में नहीं बहाते जबकि बेकार समझ कर नाली में बहा दिए जाने वाले आरओ वेस्ट वाटर का उपयोग हम पेयजल एवं बागवानी को छोड़ कर अन्य कार्यों के लिए कर सकते हैं. इसी आधार पर धरती में जमा पेयजल भी उपयोग किया जाना चाहिए. हमें यह समझना होगा की यह बहुमूल्य है.
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