हमारी बेफिक्री की मानसिकता है नदियों की दयनीय दशा की जिम्मेदार
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आज हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि गंगा सहित देश के विभिन्न नदियों के किनारे रहने वाले करोड़ों इन्सानों को भी बूँद-बूँद साफ पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। नदियों के किनारे के क्षेत्रों में भू-जल स्तर में तेजी से गिरावट के साथ ही बहुत से स्थानों पर भूमिगत जल भी इतना अधिक दूषित हो चुका है कि लोगों को पेय जल के लिए सरकार द्वारा टैंकरों से सप्लाई किये जाने वाले पानी पर निर्भर होना पड़ रहा है, मँहगे वॉटर फिल्टर का उपयोग करना पड़ रहा है अथवा ‘पैक्ड वॉटर’(बोतलबन्द पीने का पानी) खरीदना पड़ रहा है। क्यों कि जो भी इस दूषित जल का उपयोग पेयजल के लिए कर रहे हैं वे डायरिया, हेपेटाइटिस, एनीमिया जैसी जानलेवा बिमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। लोगों के हार्ट एवं किडनी पर घातक प्रभाव पड़ रहा है।
क्या वर्तमान दशा में हम गर्व के साथ कह सकते हैं – ‘हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है’, जिस गंगा जल को उसके किटाणुनाशक अलौकिक गुण के कारण सम्पूर्ण विश्व में सम्मानपूर्वक जाना जाता है आज हमारे उपेक्षापूर्ण एवं दोहनकारी प्रवृत्ति के कारण ही गंगा जल की गुणवत्ता दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है। आज जब कि हम २१वीं सदी में हैं,विज्ञान के क्षेत्र में नये -नये कीर्तिमान बन रहे हैं,हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। गंगा का जल आज आचमन तो दूर नहाने के लिए भी सुरक्षित नहीं है। स्नान हेतु सुरक्षित जल का मानक – बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड ३mg/l से कम होना चाहिए, फीकल कोलिफॉर्म ५००/१००ml से कम होना चाहिए। परंतु बी.ओ.डी. एवं फीकल कोलिफॉर्म की मात्रा ज्यादातर स्थानों पर मानक से बहुत अधिक है। दिन प्रतिदिन हो रहे नये-नये शोधों के परिणाम स्थिति की गम्भीरता को स्पष्ट कर रहे हैं। गंगा के जल में फीकल कोलिफार्म की बढ़ती मात्रा के साथ ही ‘सुपरबग’ (ऐसे बैक्टीरिया जिन पर एंटीबॉयोटिक्स का प्रभाव नहीं पड़ता) की उपस्थिति अत्यंत चिन्ताजनक है। हमारे देश में इतना प्रचुर जल स्त्रोत उपलब्ध है, परंतु देश के निवासियों को जीवन के लिए आवश्यक पेयजल उपलब्ध होना भी मुश्किल हो रहा है। आज आवश्यकता है गंगा के साथ ही देश के समस्त नदियों के संरक्षण के लिए आवश्यक नीति निर्धारण की। साथ ही जनसाधारण को भी इस गम्भीर समस्या के निराकरण हेतु अपने जीवनशैली में कुछ बदलाव लाने की भी आवश्यकता है।
इस हेतु गंगा सहित देश की समस्त नदियों में गिराये जा रहे नगरीय सीवर, औद्योगिक अवजल को तत्काल रोकना प्राथमिक कदम होगा।
नदियों को समाप्त होने से बचाने के लिए नदी विशेषज्ञों के अनुसार गंगा सहित देश की समस्त नदियों का पर्यावरणीय प्रवाह कम से कम ७०प्रतिशत बनाये रखना द्वितीय आवश्यकता है। इस हेतु सिंचाई के लिए भी कम जल से कृषि की नवीनतम तकनीक को अपनाया जाना अनिवार्य होना चाहिए, एवं नदियों से जल दोहन को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
बिजली परियोजना के लिए माइक्रो डैम (ऊँचाई ४-५मी.) तृतीय आवश्यकता है। विद्युत उत्पादन विकास के लिए आवश्यक है। बड़े बाँधों का दुष्प्रभाव स्पष्ट हो चुका है, अत: रन ऑफ दी रीवर मॉडल के तहत माइक्रो डैम द्वारा बिना जल की गुणवत्ता को प्रभावित किये हुए विद्युत उत्पादन किया जा सकता है।
व्यापक स्तर पर किये जा रहे भूजल दोहन को नियंत्रित करना चतुर्थ आवश्यकता है। इस हेतु भूमिगत जल स्तर बढ़ाने के लिए छोटे तालाबों एवं पोखरों की श्रृंखला का उचित संरक्षण एवं उनमें वर्षा का जल संचित कर भूजल रिचार्ज किया जाना आवश्यक है। नदी विशेषज्ञ प्रो. यू.के.चौधरी के अनुसार ‘‘खेत का पानी खेत में’’ सिद्धान्त के तहत खेतों में मेड़ बनाकर वर्षा के जल को तेजी से जाने से रोकने की उचित व्यवस्था द्वारा बाढ़ के खतरे को भी कम किया जा सकता है साथ ही इससे भूजल का स्तर बढ़ेगा। नगरों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
भूजल को प्रदूषित होने से बचाना पाँचवी प्रमुख आवश्यकता है। इस हेतु भूमिगत जल में नगरीय एवं औद्योगिक अवजल बिना उपचारित किये मिलने से रोकने हेतु आवश्यक उपाय किये जाने चाहिए जिससे औद्योगिक रासायनयुक्त जल एवं नगरीय सीवर का रिसाव भूजल में न हो सके। समाचार पत्रों से ऐसा ज्ञात हुआ है कि अवजल को नदियों में बहाये जाने पर सख्ती के कारण चर्मशोधन केन्द्रों में बोरवेल के माध्यम से अशोधित अपशिष्ट को सीधे सैकड़ों फीट गहराई में डाल दिया जा रहा है, जो कि भूजल के प्रदूषित होने का एक प्रमुख कारण बन रहा है। निहित स्वार्थों के कारण इस प्रकार का कार्य अत्यंत चिंताजनक है। यह तो लोगो को सामूहिक रूप से जहर देकर मारने, जैसे अपराध की श्रेणी का जघन्यतम, निंदनीय कार्य है।
पेयजल स्त्रोतों यथा-हैण्डपम्प, कूपों, तालाबों के आसपास गंदगी एवं गंदाजल जमा न होने दिया। इसका विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए एवं समय समय पर इनकी सफाई भी होनी चाहिए।
अत: स्पष्ट है कि अपने जल स्त्रोतों एवं पर्यावरण की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। आज अपने प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण एवं नदियों जल स्त्रोतों के प्रति उपेक्षापूर्ण दोहनात्मक रवैये के कारण ही हमें पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकता का व्यवसायीकरण देखना पड़ रहा है। पिछले १५-२० वर्षों में भारत में भी पेयजल ने एक बड़े व्यवसाय का रुप ले लिया है।
हमारी बेफिक्री की मानसिकता के कारण ही देश में पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकता ने व्यावसायिक रूप ले लिया है. वरना इतने प्रचुर जल संसाधन के होते हुए भी हम आज बूँद बूँद स्वच्छ पेयजल के लिए नहीं तरसते होते। कभी अमीरों का शौक बोतल बंद पानी आज गरीबों की भी मजबूरीवश आवश्यकता बन गया है. अब उन्हें भी स्वच्छ पेयजल के लिए धन खर्च करना पड़ता है. अभी भी समय है अपने जल संसाधनो की रक्षा के लिए आगे बढ़िए। इसकी शुरुआत अपने पड़ोस के जल भंडार के स्त्रोत को स्वच्छ रख कर की जानी चाहिए।
पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकता का व्यवसायीकरण भविष्य में वैश्विक स्तर पर जलस्त्रोतों पर नियंत्रण की प्रवृत्ति को जन्म देगा। यह प्रवृत्ति भविष्य में संघर्ष का कारण बन सकती है। भारत अपने प्रचुर जल स्त्रोतों के बल पर विश्व में अग्रणी बन सकता है यदि हम अपने जल स्त्रोतों को अभी से बचाने के लिए प्रयासरत हो जाएँ।
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