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‘जल ही जीवन है’ जीवन की यह हकीकत हमने हमेशा से सुनी भी है और अनुभव भी की है। परन्तु हमने क्या कभी सोचा है कि जल में ऐसा क्या विशिष्ट गुण है जिसके कारण जल जैसा दूसरा कोई पदार्थ नहीं है एवं जल ही जीवन के लिए आवश्यक तत्व क्यों है? क्यों हम पृथ्वी से परे अन्य ग्रहों पर जल की खोज कर रहे हैं? जल हमारे जीवन का आधार है क्योंकि जल के तीन प्रमुख गुण इसे अन्य मौजूद तत्वों एवं पदार्थों से अलग विशिष्टता प्रदान करते हैं। इन्ही गुणों के आधार पर ही ‘जल’ ही जल का विकल्प हो सकता हैं। ये तीन प्रमुख गुण हैं १- आयनीकरण का गुण २- हाइड्रोजन बांडिंग का गुण ३- ऊष्मा (लेटेंट हीट ) के अद्भुत संरक्षरण एवं उपयोग तथा प्रबंधन का गुण (हाई हीट कैपेसिटी)।
आयनीकरण के विशिष्ट गुण के द्वारा जल में लगभग सभी प्रकार के खनिज लवण घुलनशील हो जाते हैं। हाइड्रोजन बांडिंग का गुण भी जल में मौजूद होने के कारण जिन यौगिकों में आयनीकरण नहीं होने पर भी अपने हाइड्रोजन बांडिंग के गुण होने से वे भी जल में घुलनशील हो जाते हैं। अर्थात दो विरोधी गुणों को एक साथ समाहित करने जल के विशिष्ट गुण के कारण ही जल को ” यूनिवर्सल साल्वेंट” कहा जाता है.
अपने ‘हाई लेटेन्ट हीट कैपेसिटी’ के गुण के कारण जल आसानी से अपना रूप परिवर्तित नहीं करता। जबकि जल ही एकमात्र ऐसा यौगिक है जो द्रव, ठोस एवं गैसीय तीनो ही रूपों में पाया जाता है। परन्तु अपने रूप में परिवर्तन हेतु जल को अत्यधिक ऊष्मा प्राप्त करनी होती है अथवा निकालनी होती है, तभी वह द्रव से गैस अथवा ठोस में परिवर्तित हो सकता है। जल के इसी विशिष्ट गुण के कारण ही जल को ‘जीवन का आधार’ कहा गया है। क्योकि हमें यह मालूम है की सभी जीवित प्राणियों, वनस्पतियों में लगभग ६५ से ७५प्रतिशत तक जल पाया जाता है। यदि जल कम तापक्रम पर ही अपना रूप परिवर्तित करने लगता तो हो सकता था कि जीवन का स्वरुप भी किसी और तरीके का होता।
आप विचार कीजिये – क्या जल को प्रकृति का ट्रांसपोर्टर नहीं कहा जा सकता? चूँकि लगभग सभी प्रकार के खनिज लवण इत्यादि जल में घुलनशील होते हैं, अत: जल नदियों के रूप में अपने साथ उन्हें ले जाकर समुन्द्र में इकठ्ठा कर देता है, इसलिए समुंद्री जल में लवण एवं खनिजों कि प्रचुरता पाई जाती है. बरसात की बाढ़ में जल अपने साथ विभिन्न प्रकार के खनिज लवण, मृदा, बालू इत्यादि एक स्थान से दूसरे स्थानों तक पहुंचा देता है। इसी प्रकार वनस्पतियों में जल मिट्टी से पोषक तत्वों को जड़ों के माध्यम से खींचकर उनके अन्य भागों फूल-पत्तियों इत्यादि तक पहुंचाता है तथा पत्तियों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से बनाया गया भोजन अन्य भागों तक जल में घुलनशील होकर ही तो पहुंचता है। इसी प्रकार मानव शरीर में देखें तो जल रक्त के रूप में फेफड़ों में इकठ्ठी हुई आक्सीजन को ग्रहण कर शरीर के अन्य भागों तक पहुंचाता है। शरीर के बेकार गंदे तत्वों को किडनी में पहुंचाता है, तथा अपच्य भोजन, अपशिष्ट पदार्थों को बड़ी आंत में पहुंचाता है। इस प्रकार हम जल को प्रकृति का ट्रांसपोर्टर कह सकते हैं।
जब तक यह प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से चलती रहती है जल अपनी गन्दगी को भी इसी प्रकार साफ़ कर लेता है. इस प्रकार आज जो भी जल प्रदूषण दिखाई दे रहा है वह प्राकृतिक व्यवस्था में हस्तक्षेप के कारण ही उत्पन्न हुआ है। जो काम प्रकृति स्वयं ही कर लेती थी वह अब बिना हमारे सहयोग के स्वयं कर सकने में असमर्थ हो चुकी है। यदि हमें स्वच्छ जल चाहिए तो हमें प्राकृतिक व्यवस्था में छेड़छाड़ बंद करना ही होगा नहीं तो नदियों एवं जल स्त्रोतों कि सफाई एवं देखरेख की उचित व्यवस्था करनी पड़ेगी।
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