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बहुत महँगी पड़ेगी सस्ते यातायात हेतु बैराजों पर आधारित गंगा जलयान योजना

जनजागृति मंच
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पूर्ववर्ती सरकार द्वारा समय-समय पर प्रचारित एवं व्यवहृत, गंगा जल परिवहन योजना के असफल प्रयासों को पुन: आगे बढ़ाते हुए वर्तमान सरकार के जहाजरानी मंत्रालय द्वारा देश की जीवन रेखा, पवित्र नदी, हम सबकी माँ गंगा, (परंतु जहाजरानी मंत्रालय एवं अन्य मंत्रालयों के लिए मात्र एक साधारण नदी), वर्तमान में अत्यंत संकटग्रस्त अवस्था में हैं। गंगा में प्रस्तावित इलाहाबाद-हल्दिया जलपरिवहन परियोजना, पूर्णतया अव्यवहारिक एवं सम्पूर्ण देशवासियों की आस्था पर प्रहार करने वाली है। इस सम्बन्ध में विशेष आपत्ति गंगा में प्रत्येक १०० कि.मी. पर बैराजों की श्रृंखला बनाकर कृत्रिम रुप से जलस्तर बढ़ाने की योजना पर है।

जहाजरानी मंत्रालय के इस प्रस्ताव बारे में समाचार पत्रों के माध्यम से अवगत होने पर यह लगता है कि इससे गंगा के अस्तित्व पर ही भयावह संकट उत्पन्न होगा। प्रस्ताव के अनुसार, इलाहाबाद से हल्दिया तक १६२० कि.मी. के जलमार्ग को ६वर्ष की अवधि में विकसित करने की योजना है। इसके लिए ४२००करोड़ रुपये व्यय किये जाएंगें। १५०० टन वजनी मालवाहक एवं यात्री जहाज चलाने लायक क्षमता प्राप्त करने के लिए गंगा को तीन मीटर गहरा करने, इसकी चौड़ाई ४५मीटर करने एवं गंगा में जलस्तर को बनाये रखने के लिए प्रत्येक १००कि.मी. पर बैराज के निर्माण का प्रस्ताव है। दो बैराज के बीच मछली पालन किये जाने का प्रस्ताव है जिससे माझी एवं अन्य लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। गंगा तटों पर लाईट एवं साउण्ड शो के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा।

इस प्रस्ताव को देखने से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि कम से कम जहाजरानी मंत्रालय को गंगा की अविरलता से कोई लेनादेना नहीं है। इतनी बड़ी संख्या में बैराज बनाने से होने वाले नुकसान का वैज्ञानिक आकलन किये बिना इसकी घोषणा से जहाजरानी मंत्रालय समेत विभिन्न मंत्रालयों (जल संसाधन, ऊर्जा, पर्यटन,पर्यावरण एवं वन तथा गंगा संरक्षण मंत्रालय) का व्यवसायिक दृष्टिकोण ही परिलक्षित होता है, जो गंगा को मात्र एक साधारण नदी मानकर, जलविद्युत उत्पादन, पर्यटन, मछली पालन एवं जलपरिवहन द्वारा उसके सम्पूर्ण दोहन में अपना अपना योगदान देने के लिए तत्पर दिखाई दे रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि जहाजरानी मंत्रालय गंगा को प्रत्येक १००कि.मी. पर बाँध कर तालाबों की श्रृंखला में परिवर्तित करना चाहता है।

जहाजरानी मंत्रालय वस्तुत: इस सिद्धान्त पर कार्य कर रहा है कि जलपरिवहन, सड़क परिवहन की तुलना में सस्ता पड़ेगा। परंतु यदि हम बैराज के निर्माण एवं गंगा को गहरा करने की योजना के दुष्प्रभावों का सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय आकलन करें तो यह परियोजना कहीं अधिक मँहगी पड़ेगी।

जहाजरानी मंत्रालय ने तो फरक्का बाँध के अनुभव से भी सीख नहीं लिया है, जिसके कारण वह सम्पूर्ण क्षेत्र वर्ष भर बाढ़, कटान एवं मछलियों की विभिन्न प्रजाति पर संकट से ग्रसित रहता है। समुद्री मछलियाँ अब गंगा बेसिन के मैदानी क्षेत्र में नहीं आ पातीं हैं। प्रत्येक १००कि.मी. पर कृत्रिम बैराज बनाये जाने के उत्पन्न बाधा के कारण गंगा का प्राकृतिक प्रवाह बाधित तो होगा ही साथ ही अभी तक जो प्रदूषक गंगासागर पहुँचने पर समुद्र द्वारा उपचारित किया जाता था, उसके उपचार में समुद्र की भूमिका भी समाप्त हो जाएगी। बैराज के ऊपरी भाग में जमा होकर ये प्रदूषक गंगाजल तथा आस-पास के क्षेत्रों में भू-जल की अशुद्धता भी बढ़ाएंगें जिससे डायरिया तथा प्रवाह रुकने से मलेरिया जैसी बिमारियाँ भी बढ़ेंगीं।

नदी तल को गहरा करना पूरी तरह से अवैज्ञानिक व विध्वंसक कार्य होगा। नदी को गहरा करने से वह परत समाप्त हो जाएगी जो गंगाजल को उन दिनों के लिए रोककर रखती है जब हमें जल की सर्वाधिक आवश्यकता होती है (अप्रैल से जून माह में)। नदी विशेषज्ञों के अनुसार नदी की ड्रेजिंग करने से नदी की गहराई तो बढ़ जाती है परंतु चौड़ाई कम हो जाती है साथ ही जल की मात्रा में कोई वृद्धि नहीं होती। गंगा को कितनी बार गहरा किया जाएगा? यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। गंगा में बीचोबीच एक बार गहरा किये जाने के कुछ समय बाद गंगा स्वयं उन स्थानों को भर देंगीं जहाँ गहरा किया गया था। यदि किनारे पर गहराई बढ़ाई गयी तो इससे व्यापक रुप से मृदा क्षरण होगा। यदि सरकार बार-बार ड्रेजिंग कराएगी तो यह अनवरत रुप से खर्चीला कार्य भी होगा। साथ ही जलीय जन्तुओं पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा।

गंगा में जलयान चलाये जाने से प्रदूषक भार में अत्यधिक वृद्धि होगी जिसका प्रभाव जलीय जीवों पर क्या होगा? विशेषत: भागलपुर जिले में सुल्तानगंज एवं कहलगाँव के बीच स्थित ५०कि.मी. लम्बाई में विस्तृत ‘विक्रमशिला गंगा डाल्फिन सेंचुरी’ पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसका भी आकलन किया जाना आवश्यक है। अत: स्पष्ट है कि गंगा में बैराज बनाकर जलयान चलाए जाने की परियोजना की सफलता के आसार वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत खर्चीली है, साथ ही इसके व्यापक दुष्परिणाम होंगें।

जलयान चलाने के लिए गंगा में प्राकृतिक रुप से जलस्तर बढ़ाये जाने की आवश्यकता है तभी यह परियोजना सफल हो सकती है। इस हेतु भीमगौड़ा बैराज, हरिद्वार एवं नरोरा बैराज अत्यधिक गंगा जल दोहन को नियंत्रित करके गंगा में जलस्तर को बढ़ाने के प्रयास किये जाने चाहिए न की बैराजों की श्रृंखला द्वारा।

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